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ऋषिकेश, हिन्दुओं के सर्वोच्च तीर्थ के रूप में स्थापित भगवाण विष्णु के बैकुण्ठ धाम बद्रीनाथ के ग्रीष्मकालीन पूजापाठ के दौरान परम्परागत ढंग से बद्रीविशाल के लेप और अखण्ड ज्योति के लिए तिल का तेल की प्रक्रिया सदियों पुरानी है जो कि आज भी निभाई जाती है इस प्राचीन परम्परा पर देखिए नरेन्द्रनगर से खास रिर्पोट-
सदियों पुरानी परम्पराओं के अनुसार भगवान ब्रदीविशाल के लेप और अखण्ड ज्योति जलाने के लिए उपयोग होने वाला तिल का तेल सदियों से नरेन्द्रनगर स्थित टिहरी राजमहल में महारानी के अगुवाई में बड़ी ही पवित्रता से राजपरिवार और डिमरी समाज की सुहागिन महिलाओं द्वारा निकाला जाता है जो कि इस बार महारानी की पुत्री और उत्तराधिकारी क्षीरजा की अगुवाई में निकाला गया,यह तेल बिना किसी मशीन के प्रयोग से प्राचीन कोल्हू और हाथों से परम्परागत ढंग से ही निकाला जाता है, प्राचीन काल में इस परम्परा को ही बद्रीनाथ जी के कपाट खुलने की प्रकिया की शुरूआत माना जाता रहा है
तेल निकालने के बाद इसे एक घडे में डाला जाता है जिसे गाडू घड़ा कहा जाता है जिसके बाद इसे ऋषिकेश से गढ़वाल के प्रमुख शहरों से होते हुए बद्रीनाथ जी के कपाट खुलने के दिन ही गाडू घड़ा यात्रा बद्रीनाथ पहुचती है सदियों से चली आ रही इस परम्परा को टिहरी राजपरिवार और डिमरी समाज के लोग निभाते आ रह है और भविष्य में भी परम्परा को जीवित रखना चाहते है।
राजा महराजाओं के समय से चली आरही सदियों पुरानी परम्पराऐं आज भी जीवित है इन्तजार है तो बस भगवान बद्रीविशाल की कपाट खुलने की इस प्रक्रिया को उस दिन का जब चारधाम यात्रा का आगाज के रूप में इस गाडू घडा यात्रा को प्रचार प्रसार तेजी से हो रहा है।
सुहागिन महिलाओं के द्वारा पवित्र तेल को निकालकर कलश(गाडू घड़ा) में रखा जाएगा,जिसके बाद आज पवित्र तेल को विभिन्न पडाओं से होकर बद्रीनाथ धाम पंहुचाया जाएगा, गाडू घड़ा आज अपने पहले पांडव ऋषिकेश के रेलवे रोड स्थित चेला चेतराम धर्मशाला में पंहुचेगा,कल यानी शनिवार को श्रद्धालु गाडू घड़े का दर्शन कर सकेंगे,दोपहर के बाद पवित्र कलश अपने अगले पड़ाव के लिए रवाना हो जाएगा।